उत्तराखण्ड

पंतनगर: सीएम ने शिक्षकों की जांच के लिए बनी कमेटी भंग की तीन दिन पूर्व कृषि सचिव ने कुमाऊं आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर परियोजनाओं नियुक्त शिक्षकों को अनुचित लाभ देने पर दिए थे जांच के आदेश

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पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने मुख्यमंत्री सचिवालय में सीएम पुष्कर सिंह धामी से मिलकर जीबी पंत कृषि विवि में शिक्षकों/वैज्ञानिकों को शिक्षक नहीं मानने के प्रकरण की जांच कमिश्नर को सौंपने से उत्पन्न विधिक संकट और इस मामले में राज्यपाल के माध्यम से शिक्षाविदों व सेवानिवृत्त कुलपतियों से रायशुमारी कर निर्णय लेने पर चर्चा की। प्रकरण को सीएम धामी ने सुना और शासन की ओर से गठित कुमाऊं आयुक्त की अध्यक्षता में जांच कमेटी को तत्काल भंग करते हुए पूर्व विधायक शुक्ला को आश्वस्त किया कि इस प्रकरण का समाधान राज्यपाल को विश्वास में लेकर जल्द किया जाएगा। पूर्व विधायक शुक्ला ने सीएम धामी को बताया कि पंतनगर विवि उच्च शिक्षा से भिन्न कृषि शिक्षा के तहत शिक्षण, शोध व प्रसार के सिद्धांत पर चलने वाला पहला विवि है। आईसीएआर के एक्रिप, नार्प व सामान्य बजट के लंबे समय तक चलने वाले शोध परियोजनाओं में विवि की ओर से भर्ती शिक्षक/वैज्ञानिक व छात्र इन्हीं परियोजनाओं में शोध के साथ शिक्षण कार्य भी करते रहे। 2015 में तत्कालीन वित्त नियंत्रक ने तथ्यहीन बिंदुओ के माध्यम से इन वैज्ञानिकों/शिक्षकों को शिक्षक नहीं मानने का बवाल खड़ा कर दिया। जबकि पूरे देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों ने इन्हे शिक्षक/वैज्ञानिक का दर्जा दिया है। हाल ही में 35 शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने का अनुचित निर्णय कृषि सचिव ने विवि को भेज दिया। जबकि यह वह शिक्षक हैं जो शिक्षण के साथ-साथ शोध करते हैं और उनकी सेवानिवृत्ति की आयु अन्य शिक्षकों की तरह 65 वर्ष है। परंतु कह दिया गया कि परियोजना के कर्मचारी हैं, अतः इन पर यह नियम लागू नहीं होगा। विवि के नियम परिनियम के तहत प्रबंध परिषद कई बार स्पष्ट कर चुकी है कि यह सभी वैज्ञानिक/शिक्षक हैं और इन पर भी वही नियम लागू होगा जो शिक्षकों पर लागू होता है। इस प्रकरण पर शिक्षकों व छात्रों में काफी क्षोभ व दुख है। विधायक के नाते वह दो बार और उद्योगपति के नाते एक बार विवि की प्रबंध समिति के सदस्य रहे हैं। पंतनगर विवि के कुलपति की अध्यक्षता में प्रबंध परिषद कार्य करती है। जिसमें दो विधायकों सहित सचिव कृषि शिक्षा, वित्त व आईसीएआर के प्रतिनिधि होते हैं। कुलाधिपति के अनुमोदन से शिक्षकों का चयन हुआ है, जिसको गलत कहा जा रहा है। उचित होगा कि उक्त प्रकरण का समाधान राज्यपाल/कुलाधिपति के माध्यम से शिक्षाविदों की समिति की जांच रिपोर्ट पर कराया जाए।